Bhabhi Ki Jabrdast Chudai
अगस्त का महीना था, मैं खाना खाकर दरवाजे चारपाई पर मच्छरदानी लगाकर लेटा था क्योंकि गाँव में बिजली खराब थी तो पंखा तो चल नहीं सकता था इसलिए बाहर ही लेटा था।
मैं लेटा हुआ मोबाइल पर अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़ रहा था कि तभी गाँव में कुछ हलचल सी सुनाई पड़ी।
कुछ लोगों की आवाजें आ रही थी।
थोड़ी देर में पता चला कि किसी की भैंस खुल गई है।
तब तक गाँव की भाभी तेज चाल में मेरे दरवाजे आईं और बोली- चक्रेश भैया, मेरी भैंस नहीं मिल रही है पता नहीं कहाँ चली गई, तुम चलकर उसे ढूंढवा दो।
‘
पापा की चारपाई भी पास में ही थी, उन्होंने भी कहा- जा देख ले जाकर!
मैंने सोचा अब तो जाना ही पड़ेगा।
मैंने लाठी और बत्ती ली और कहा- चलो भाभी, देखते हैं भैंस कहाँ गई?
मैंने भाभी के साथ आस पास के कई खेतों में टार्च लगाकर देखा लेकिन भैंस का कहीं पता न चल सका।
मैंने कहा- भाभी, चलो थोड़ा आगे मेरे खेतों तक चलकर देखते हैं।
‘चलो!’ भाभी भी तैयार थी।
अगस्त का महीना था, मैं खाना खाकर दरवाजे चारपाई पर मच्छरदानी लगाकर लेटा था क्योंकि गाँव में बिजली खराब थी तो पंखा तो चल नहीं सकता था इसलिए बाहर ही लेटा था।
मैं लेटा हुआ मोबाइल पर अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़ रहा था कि तभी गाँव में कुछ हलचल सी सुनाई पड़ी।
कुछ लोगों की आवाजें आ रही थी।
थोड़ी देर में पता चला कि किसी की भैंस खुल गई है।
तब तक गाँव की भाभी तेज चाल में मेरे दरवाजे आईं और बोली- चक्रेश भैया, मेरी भैंस नहीं मिल रही है पता नहीं कहाँ चली गई, तुम चलकर उसे ढूंढवा दो।
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पापा की चारपाई भी पास में ही थी, उन्होंने भी कहा- जा देख ले जाकर!
मैंने सोचा अब तो जाना ही पड़ेगा।
मैंने लाठी और बत्ती ली और कहा- चलो भाभी, देखते हैं भैंस कहाँ गई?
मैंने भाभी के साथ आस पास के कई खेतों में टार्च लगाकर देखा लेकिन भैंस का कहीं पता न चल सका।
मैंने कहा- भाभी, चलो थोड़ा आगे मेरे खेतों तक चलकर देखते हैं।
‘चलो!’ भाभी भी तैयार थी।